रूह मेरी !
क्यूँ यूँ चिंतित .
देखली है शक्ति अपनी

देखा है सौंदर्य अपना ,
देखे अपने पर सुनहरे ..
क्या कमी जो ,
होती चिंतित ?
तू है शाश्वत ,
शाश्वती की, शाश्वती की, शाश्वती की।।




न मैं हूँ यह,
इतनी मदिरा पी ली मैंने
प्रेम मधु की मदिर चुस्कियां लीं कुछ मैंने,
अधर ..अविचल कर दिए मैंने
भाषा के पट बंद करो अब

