अक्षय दिवाकर ,
Oh you, unceasing sun,
to me Your particles communicate
The luminous essence of God,
Are you our God? I do not know...
Intoxicated, I say nought,
Bewitched by the magic potion.
I cannot differentiate
Between my drunk and sober state
आह तुम .अक्षय दिवाकर ,
हर कण तेरा जताए ईश का स्वर्णिम जगत ,
क्या हमारा ईश तू ही ? जानता न ...
मत्त सा कहता न कुछ भी ,
धुत्त जादुई सुरा से
भेद कर सकता नहीं
कि मत्त हूँ या स्वस्थ हूँ मैं
No comments:
Post a Comment