This is how it always is when I finish a poem.
A great silence comes over me,
and I wonder why I ever thought
to use language !
हमेशा होता है ऐसा जब ख़त्म करता हूँ नज़्म
एक चुप्पी गहन मुझ को घेर लेती
होता हूँ हैरान खुद पर क्यूँ सोचा भी मैंने
कि जुबां को यूं चुनू ?
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